मिला था एक अजनबी से,
एक जादूगर जैसा पहेली से।
एक छुटकी में वो बनाया मुझे
अपना, दूसरे ही पल में पराया।
जादू था उसकी आँखों में,
एक अनजाना सा अपनापन था
एक पल में बदल दिया
मेरे ज़िंदगी को, पहली सा बना दिया।
ये सपना हैं या हकिकत
कोई तो बता दें मुझे।
इस पहेली को सुझादे ज़रा,
बचाले मुझको ये अंधेरे से।
लेकिन ये पहेली भी कभी
अच्छा लगता हैं।
क्योंकि सपना हैं अभी भी
इस छोटी सी ज़िंदगी में।।
NB: written as a part of the arts day competitions at my college..